सोमवार, 9 मई 2022

जंग कहां-कहां और कैसे कैसे असर डाल सकती है?

 समयकाल... साल 1941-1942


यूरोप में दूसरे महायुद्ध के छिड़े करीब दो साल हो गए थे. ब्रिटिश शासन में होने के बावजूद शुरू के दो साल भारत या दिल्ली के लोगों पर कुछ खास असर नहीं दिखा.. लेकिन 1941 के समाप्त होते-होते पासा पलटने लगा. जापान युद्ध में कूदा और भारत तक उसकी आंच पहुंचने लगी. दिल्ली में अमेरिकी समेत तमाम विदेशी सैनिक तैनात होने लगे. हवाई हमले से बचने के लिए बंकर और सड़कों पर खंदकें खोदी जाने लगी. दिल्ली में रोजमर्रा के लिए जरूरी सामानों की कीमतों पर असर दिखने लगा. चीनी चार आने से बढ़कर सात आने सेर हो गई. गेहूं बाजार से गायब हो गया. हर दुकानदार कसमें खाता कि दुकान में गेहूं या आटा एकदम नहीं है. लोग पहाड़गंज की गलियों में चार-चार घंटे चक्कर लगाकर जैसे तैसे महंगे दामों पर जुगाड़ कर पा रहे थे. गेहूं की तरह कोयला भी बाजार से जैसे लापता हो गया. जगह-जगह चक्कर काटकर 19 रुपये मन के हिसाब से जुगाड़ हो पा रहा था. राशनिंग की व्यवस्था लागू कर दी गई लेकिन फिर भी अगले कई महीने तक हर परिवार की जंग आटा-दाल जैसी जरूरी चीजों को जरूरत भर जुटा लेने की ही बनी रही.(एक पुस्तक का अंश...)


समयकाल... साल 2022

ये सब तब के हालात थे जब दुनिया ग्लोबल नहीं हुई थी... आज जब रूस और यूक्रेन की जंग चल रही है और कमोबेश दुनिया का हर देश किसी न किसी पक्ष में खड़ा दिख रहा है. प्रतिबंधों का दौर शुरू हो गया है. ऐसे में असर भी दिखने लगा है. आटा, दाल, तेल, चीनी जैसे राशन के सामान और पेट्रोल-डीजल जैसी चीजें फिर महंगी हुई जा रही हैं. शताब्दी बदल गई, कई दशक बीत गए लेकिन हालात जस की तस है.


हालात को बयां करतीं कविता की कुछ लाइनें...


''जंग में अर्थ का अनर्थ हो,

अर्थ के अभाव में,

दो जून रोटी की तलाश में

मानव मारा मारा फिरता,

जंग से जंग लगे विकास को,

जंग का तिलस्म देखो,

सदियों का परिश्रम,

पल में धू धू कर धुआं बने,

कहीं राख बन बिखर जाए,

धरती के लिए जंग करे इंसान

लेकिन...''

गुरुवार, 21 अप्रैल 2022

ये फ्यूचर सिटीज... जो पेट्रोल-डीजल से आगे की दुनिया की ओर बढ़ रहे!

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आज जिस पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से न केवल भारत बल्कि पाकिस्तान-नेपाल-श्रीलंका और यूरोपीय देशों समेत दुनिया के तमाम जगहों के लोग परेशान हैं एक दिन ऐसा आएगा जब दुनिया में न तो पेट्रोल-डीजल होगा और न ही कोई देश या शहर इसका इस्तेमाल कर रहा होगा? हां ये सच है कि जिस तरीके से दुनिया तेजी से बदल रही है, ईंधन के प्रकार और उनकी उपलब्धता के हालात भी बदल रहे हैं. आज दुनियाभर में करोड़ों-अरबों गाड़ियां पेट्रोल और डीजल पर चल रही हैं. कई तेल उत्पादक देशों की आय का साधन ही पेट्रोल-डीजल बेचकर आया धन है लेकिन ऐसा हमेशा के लिए रहने वाला नहीं है. दुनिया एक बड़े बदलाव की ओर बढ़ रही है.



ग्रीन एनर्जी पर एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में अभी 1.2 अरब गाड़ियां हैं जिनकी तादाद 2035 तक 2 अरब तक हो जाएंगी. अभी वर्तमान में इनमें से कुछ प्रतिशत गाड़ियां ही पेट्रोल-डीजल के अलावा किसी और तरह के ईंधन से चलती हैं. लेकिन अब कई देश साल 2030 तक और अधिकांश देश साल 2045 तक पेट्रोल-डीजल मुक्त शहरों की ओर बढ़ने के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं. अगर सबकुछ प्लान के मुताबिक चलता रहा तो आने वाले वक्त में हमारे शहर-गांवों में गाड़ियां पेट्रोल-डीजल की बजाय इलेक्ट्रिक-गैस-हाइड्रोजन और सोलर जैसी ग्रीन एनर्जी वाली ईंधन से चलेंगी. भारत में भी साल 2030 तक पेट्रोल-डीजल को फेजआउट करने का सरकार ने लक्ष्य रखा है यानी उसके बाद पेट्रोल-डीजल से चलने वाली गाड़ियों की बिक्री रोकने के प्लान पर सरकारें आगे बढ़ रही हैं.


दुनिया से कब तक खत्म हो जाएगा पेट्रोल-डीजल?

साल 2016 तक दुनिया में कुल ऑयल रिजर्व 1.65 ट्रिलियन टन होने का अनुमान था. जो कि दुनिया की हर साल की जरूरतों का 46 गुना था. इसका मतलब पर्यावरणविद् ये लगा रहे थे कि दुनिया के पास और 47 साल का तेल बचा हुआ है यानी साल 2063 आते-आते दुनिया पेट्रोल-डीजल फ्री हो चुकी होगी या अगर थोड़ा-बहुत भंडार बचा भी होगा तो उसका इस्तेमाल करने वाली गाड़ियां हमारे पास नहीं होंगी. मतलब वो बीते वक्त की चीजें हो चुकी होंगी. यानी ईंधन की जरूरतों के लिए नए विकल्पों पर दुनिया निर्भर होगी.


आइए आपको बताते हैं कि दुनिया के उन 11 शहरों के बारे में जो पेट्रोल-डीजल मुक्त दुनिया की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं. 


1. मैकिनैक आइलैंड ऐसे ही रोल मॉडल नहीं

प्रदूषण मुक्त-ट्रैफिक मुक्त और ईंधनों की मारामारी से मुक्त जिस दुनिया का सपना आज दुनिया के सारे शहर देख रहे हैं अमेरिका के मिशीगन के मैकिनैक आइलैंड ने उस सपने को पूरा करने का मिशन साल 1898 में ही शुरू कर दिया था जब सभी मोटराइज्ड गाड़ियों पर बैन लगा दिया गया. ये आइलैंड ट्रांसपोर्ट के लिए साइकिलों और हेरिटेज संजोए घोड़ा गाड़ियों यानी बग्घियों का इस्तेमाल करता है. अपनी परंपरागत पहचान के लिए यह शहर दशकों से दुनिया भर के प्रकृति प्रेमी टूरिस्ट्स के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. आज जब अन्य शहर खुद को प्रदूषण मुक्त बनाने की जंग लड़ रहे हैं ऐसे में यहां के लोगों को अपने पर नाज होना स्वाभाविक है.


2. वेनिस सिटी की बात ही कुछ अलग

घरों-दफ्तरों और स्कूल-कॉलेजों के आगे-पीछे से गुजरते जलमार्गों और शहर के बीचोबीच चलने वाले नावों, वाटरबसों और स्टीमरों के कारण खूबसूरत दिखने वाले इटली के वेनिस शहर को गाड़ियों से मुक्त शहर के सिंबल के रूप में दुनियाभर में देखा जाता है. शहर के बीच से हर जगह सड़कों की जगह नहरों का जाल बिछा हुआ है, लोगों के पास अपनी बोट हैं तो सार्वजनिक परिवहन के लिए भी बोट ही शहर में आने-जाने का यहां मुख्य जरिया है. यहां के लोग आवाजाही के लिए इन प्रदूषण फ्री साधनों का खूब बेफिक्री के साथ इस्तेमाल भी करते हैं.


लेकिन ये तो उन शहरों की बात हुई जिन्होंने पहले से ही प्राकृतिक उपायों को अपना लिया था लेकिन आधुनिकता के प्रतीक ऐसे भी कई शहर हैं जिन्होंने ग्रीन एनर्जी अपनाने की ओर तेजी से कदम बढ़ा दिए हैं... भारत जैसे देशों में अभी इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री एक-दो प्रतिशत तक है लेकिन नॉर्वे जैसे कई देश इस दिशा में तेजी से आगे बढ़े हैं जहां इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री कुल कारों की बिक्री का 60 फीसदी तक पहुंच चुका है. 2025 तक नॉर्वे ने कार्बन उत्सर्जन वाली गाड़ियों से मुक्ति का टारगेट रखा है. नॉर्वे की राजधानी ओस्लो के अलावा दुनिया के कई शहरों ने प्रदूषण मुक्त फ्यूचर सिटीज बनने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा दिए हैं. तो अमेरिका ने साल 2035 तक 100 फीसदी कार्बन-फ्री इलेक्ट्रिसिटी का टारगेट रखा है. अमेरिका का कैलिफोर्निया 2035 तक गैसोलीन आधारित गाड़ियों और ट्रकों की बिक्री रोकने की तैयारी में जुटा है. वहीं, जर्मनी के कई शहरों ने 2018 से ही डीजल पर चलने वाली गाड़ियों को बैन करने का सिलसिला शुरू कर दिया था.


3. लंदन की कार फ्री स्ट्रीट

ब्रिटेन ने साल 2025 तक पेट्रोल बसों की और 2030 तक पेट्रोल कारों की खरीद पूरी तरह से बैन कर देने का लक्ष्य रखा है. इस आने वाले कल की झलक कैसी होगी ये देखना हो तो लंदन के ही बीच स्ट्रीट इलाके की ओर रुख करना चाहिए जहां अभी से ही पेट्रोल और डीजल से चलने वाली कारें बैन हैं. यहां इमरजेंसी गाड़ियों को छोड़कर किसी और गाड़ी को न तो एंट्री मिलती है और न ही पार्किंग की जगह. बल्कि सोलर, इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन जैसे नए ईंधन विकल्पों से चलने वाली गाड़ियों के लिए पूरी सुविधाओं का यहां इंतजाम किया गया है. जाहिर है इस इलाके में रहने वाले लोगों के लिए पेट्रोल-डीजल के युग से आगे बढ़ जाना ही अब आखिरी विकल्प है.


4. पेरिस के कार-फ्री जोन

पेट्रोल-डीजल से होने वाले प्रदूषण से मुक्ति के लिए फ्रांस का पेरिस शहर कई बदलावों की ओर बढ़ रहा है. यहां कई दिन कार फ्री डे के रूप में मनाए जाते हैं. इसके अलावा साल 2024 से शहर के अंदर की सड़कों को कार फ्री जोन के रूप में घोषित करने की तैयारी है. यानी लोग शहर के अंदर सिर्फ ग्रीन एनर्जी से चलने वाली सार्वजनिक परिवहन के साधनों का ही इस्तेमाल कर सकेंगे. पेरिस के कई जिलों को कार फ्री जोन के रूप में विकसित करने के प्लान पर सिटी प्लानर आगे बढ़ रहे हैं. साल 2030 के बाद पेट्रोल और डीजल गाड़ियां यहां की सड़कों से पूरी तरह नदारद होंगी.


5. कोपेनहेगन की साइक्लिंग की तो दुनिया है कायल

डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन अगले तीन सालों में जीरो एमिशन के टारगेट को पूरा करने की तैयारी में है. यानी प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों से पूरी तरह मुक्त. साइकिल इस शहर का फैशन स्टेटमेंट है. शहर भर में साइकिल लेन पूरी तरह सेफ्टी वाले बनाए गए हैं. ट्रैफिक सिग्नल पर साइकिलों को पहले प्रायोरिटी के साथ पास कराया जाता है. दफ्तर जाने वाले प्रोफेशनल हों या बिजनेसमैन, या बच्चों को स्कूल पहुंचाने वाले पैरेंट्स सब साइकिलों की सवारी पूरी शान से यहां करते हैं. शहर में कई स्टार्टअप लाइफस्टाइल की नई तकनीकों पर काम कर रहे हैं जिन्होंने साइकिल-फ्रेंडली सड़कें, आधुनिक स्काई-स्लोप बनाकर लोगों के लिए साइकिलों से आवाजाही को और आसान बना दिया है.



6. वैंकुवर का फ्यूचर ट्रांसपोर्ट प्लान तो सबकों चौंका देगा

कनाडा के खूबसूरत शहर वैंकुवर ने 2050 तक खुद को तेल के इस्तेमाल से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है. साल 2035 तक यहां पेट्रोल-डीजल पर चलने वाली कारें और छोटे ट्रकों को बैन करने का प्लान है. 2040 तक पेट्रोल-डीजल वाली सारी गाड़ियां यहां बैन होंगी और 2050 तक बाकी कामों में इनके इस्तेमाल पर भी बैन होगा. यहां बस ट्रांसलिंक, सी-बसेज, स्काई-ट्रेन जैसी आधुनिक सुविधाएं डेवलप की गई हैं जो पेट्रोल-डीजल से मुक्त ट्रांसपोर्ट सुविधाओं की ओर शहर को ले जा रही हैं.


7. ऑकलैंड की सड़कों का मैजिक

अगर आपके पास कार न हो और फिर भी आप शहर के हर लग्जरी इलाके को शान से घूमना चाहते हैं तो ये सुविधा आपको न्यूजीलैंड की राजधानी ऑकलैंड में देखने को मिल सकती है. शहर के सभी बड़े सेंटर्स को जोड़ने वाला रैपिड रेल नेटवर्क, इलेक्ट्रिक कारों-टैक्सियों, शहर के बीच चलने वाली छोटे क्रूज आपको हर लग्जरी का अहसास कराएंगे. यहां के लोगों को सार्वजनिक परिवहन की आदत डालनी ही होंगी क्योंकि ये शहर साल 2050 तक पेट्रोल-डीजल कारों और वैन को बैन करने की तैयारी में है. 2035 से तेल निर्यात को बैन करने की तैयारी है. इसके अलावा कारों के इस्तेमाल को घटाने के लिए पार्किंग फीस बढ़ाने, कंजेशन चार्ज बढ़ाने की तैयारी है. लोगों के पास नए विकल्प हों इसके लिए शहर में 2035 तक इलेक्ट्रिक और बैटरी पावर्ड लाइट व्हीकल पाथ-वे तैयार करने पर भी काम हो रहा है.


8. केपटाउन की सड़कों से गाड़ियां आउट

ट्रैफिक फ्री सड़कें, गाड़ियों के शोर से मुक्ति दिलाने के लिए दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन ने कई इलाकों को कार-फ्री जोन बना दिया है. इसकी शुरुआत CBD में सबसे प्रमुख स्ट्रीट को दोपहर के 2 बजे से रात के 11 बजे तक कार-फ्री बनाने के साथ हुआ. शहर के कई अन्य इलाकों में भी कार-फ्री जोन बनाने की तैयारी है ताकि शहर को प्रदूषण मुक्त करने के साथ-साथ लोगों को सड़कों पर ट्रैफिक जाम से भी मुक्ति दिलाई जा सके.


9. मैक्सिको सिटी की ज्यादा आबादी और प्रदूषण से जंग

मैक्सिको जो कि खुद पेट्रोलियम उत्पादन और निर्यात के लिए जाना जाता है वह भी पेट्रोल-डीजल कारों से मुक्त भविष्य की ओर कदम बढ़ा रहा है. साल 2019 से ही यहां डीजल गाड़ियों को कम करने की योजना शुरू हुई थी. इसके अलावा ईंधन में सल्फर की मात्रा घटाकर प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए भी कदम उठाए गए हैं. यहां ज्यादा आबादी, ट्रैफिक जाम और ज्यादा प्रदूषण से मुक्ति के लिए प्रदूषण फैलाने वाले कारों को 2025 तक बैन करने का लक्ष्य इस शहर ने रखा है.


10. क्विटो का ओमिशन-फ्री विजन

पेट्रोल-डीजल कारों से प्रदूषण को रोकने के लिए इक्वेडोर के शहर क्विटो ने भी साल 2035 तक ऐसी गाड़ियों को बैन करने का प्लान बनाया है. यहां की कई कंपनियों ने सस्ती इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण के काम को तेज किया है ताकि बैन के बाद ट्रांसपोर्ट के इस लक्ष्य को पूरा किया जा सके और ट्रांसपोर्ट के लिए जरूरी कार्बन-फ्री गाड़ियां लोगों को मुहैया कराई जा सके.


11. बार्सिलोना सिटी प्लानिंग जैसा कहीं नहीं

स्पेन के बार्सिलोना शहर ने तो एक साथ शहर की सड़कों से 50 हजार गाड़ियों और मोटरबाइक को रेस्ट पर भेजने का प्लान तैयार किया है. ज्यादा पॉलुशन फैलाने वाली गाड़ियों को सुबह 7 बजे से रात 8 बजे तक शहर की सड़कों पर पूरी तरह बैन करने का प्लान इस शहर के प्लानर्स ने बनाया है. इस फैसले को सख्ती से लागू करने के लिए बैन की हुईं गाड़ियों को सड़कों पर पकड़े जाने पर गाड़ियों के मालिकों पर भारी जुर्माने के प्रावधान किए गए हैं. ऐसा अनोखा कदम जो किसी शहर में देखा भी नहीं गया हो वह इस शहर में लाया गया है. जो गाड़ी मालिक अपनी गाड़ियों को स्क्रैप में देने को राजी हुए उन्हें शहर प्रशासन ने फ्री-ट्रैवेल कार्ड T-verde ऑफर किया. जिसका इस्तेमाल वे बार्सिलोना शहर की मेट्रो, इंटरसिटी बस, ट्राम, ट्रेन और बाकी सार्वजनिक परिवहन सेवाओं में मुफ्त यात्रा के लिए कर सकेंगे. स्क्रैप में गाड़ी देने के बाद तीन साल तक नई गाड़ी नहीं खरीदने का नियम है और ऐसा करने वाले गाड़ी मालिकों के परिवार के अन्य सदस्यों को भी फ्री ट्रैवल कार्ड की सुविधा प्रदान की गई है.


भारत में क्या है फ्यूचर ट्रांसपोर्ट की तैयारी?

न केवल अमेरिकी प्रायद्वीप और यूरोप के देश बल्कि प्रदूषण से जूझ रहे भारत जैसे विकासशील देशों ने भी इस दिशा में बड़ा कदम उठाया है. भारत ने भी इस नई दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए 2030 तक नए पेट्रोल और डीजल गाड़ियों की बिक्री रोकने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए तेजी से देश में इलेक्ट्रिक कारों और हाइड्रोजन कारों की लॉन्चिंग का सिलसिला शुरू हो गया है. न केवल कंपनियों की बड़ी तैयारी इस दिशा में है बल्कि सरकारें भी दफ्तरों के लिए गाड़ियों की खरीदारी में पेट्रोल-डीजल गाड़ियों की जगह इलेक्ट्रिक गाड़ियों की खरीद को बढ़ाकर इस काम में तेजी लाने की ओर बढ़ रही हैं. इसके अलावा देश के तमाम शहरों में मेट्रो ट्रेन, बुलेट ट्रेन, हाइपरलूप ट्रेन, मोनो रेल, स्काई बसें जैसी नई ट्रांसपोर्ट सुविधाओं की शुरुआत की तैयारी भी जारी है जिससे लोगों को पेट्रोल-डीजल मुक्त ट्रांसपोर्ट की सुविधा मिल सके.


चुनौतियां भी कम नहीं इस राह में

भारत में अभी कुल कार बाजार में सिर्फ 1 फीसदी इलेक्ट्रिक कारों की हिस्सेदारी है. लेकिन साल 2025 तक इसके 15 फीसदी यानी 475 अरब रुपये तक पहुंच जाने का अनुमान है. हालांकि, इस सपने को पूरा करने के रास्ते में अच्छी सड़कें, बिजली की ज्यादा खपत और चार्जिंग स्टेशंस, दूरदराज के इलाकों में भी चार्जिंग सुविधाएं जैसी जरूरतों को पूरा करना अनिवार्य शर्तें होंगी. इसके अलावा इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन कारों की भारी कीमतें भी पेट्रोल-डीजल मुक्त देश के रास्ते में बाधा बनेंगी जिनसे पार पाने की चुनौती न केवल भारत बल्कि दुनिया के बाकी शहरों के सामने भी होगी.

रविवार, 19 दिसंबर 2021

Artificial Intelligence... क्या इंसानों की जगह ले लेंगे रोबोट्स?


मशीनों ने पहले इंसान की जिंदगी बदली और अब नया दौर आने वाला है दुनिया में स्मार्ट मशीनों का... यानी जब मशीन खुद से सोच-समझ सकेंगे और खुद से फैसले ले सकेंगे. ये कैसे संभव होगा इसे अभी दुनिया कौतूहल के साथ देख रही है लेकिन तकनीक की दिग्गज कंपनियां इसे सच कर दिखाने के बहुत करीब हैं. इसे नाम दिया गया है- Artificial Intelligence. आज हर कोई जानना चाहता है कि आखिर ये है क्या?

साल 1955 में अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक जॉन मेकार्थी ने इस तकनीक की पहचान की थी. इसका सीधा मतलब था उस तकनीक से जिससे मशीनों को स्मार्ट बनाया जा सके. ये दो शब्दों आर्टिफिशियल और इंटेलिजेंस से मिलकर बनी है. यानी इंसान द्वारा निर्मित सोच की शक्ति. इस तकनीक की मदद से ऐसा सिस्टम तैयार किया जा सकता है, जो इंसानी बुद्धिमत्ता यानी इंटेलिजेंस के बराबर होगा. यह तकनीक खुद सोचने, समझने और कार्य करने में सक्षम है.

नए उभरते रोबोट्स के रहस्य और तकनीक के तमाम विकास के बावजूद अब तक दुनिया में मशीन और इंसान के बीच एक बड़ा फर्क है, वो है सोचने-समझने की क्षमता और लॉजिक के आधार पर फैसले कर काम करने को लेकर... लेकिन आपको हैरानी होगी कि आने वाली दुनिया में ये हालात बदलने वाली है. यानी मशीन भी खुद से सोच-समझ कर लॉजिक के आधार पर फैसले कर पाएंगे और इससे मेडिकल-एजुकेशन, रिसर्च समेत तमाम क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव आने वाले हैं. इस तकनीक को आने वाले कल की दुनिया की तस्वीर बताई जा रही है.

इंसानों की तरह क्षमताएं

कुछ हद तक दुनिया में ये लंबे समय से चली आ रही है सुपर कंप्यूटर के रूप में,  लेकिन अब सुपर स्मार्ट मशीनों का दौर आने वाला है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पिछले समय का डेटा स्टोर कर, उनका इस्तेमाल कर खुद सीखने और फैसला लेने में सक्षम है. इसकी क्षमता मानव मस्तिष्क की सीमा तक पहुंच गई है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस प्रणाली के आने से रोबोट्स इंसानों की तरह यह जान सकेंगे कि उनका वजूद क्या है. इसके बाद इंसानों और मशीनों में कोई अंतर नहीं रह जाएगा.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक आने से मेडिकल सेक्टर को सबसे ज्यादा फायदा होगा. इस तकनीक से एक्सरे रीडिंग आसान हो जाएगी. डॉक्टर्स को अनुसंधान में मदद मिलेगी. साथ ही मरीजों का बेहतर तरीके से इलाज भी किया जा सकेगा. खासकर रिमोर्ट डायग्नोसिस और रिमोट सर्जरी के जरिए. इसके अलावा खेल, स्कूल-कॉलेज से लेकर कृषि के क्षेत्र से जुड़े लोगों को भी इससे बहुत फायदा होगा. तकनीक के जरिए ट्रेनिंग और नई जानकारियों को तुरंत लोगों को समझाने में आसानी होगी.

हालांकि, कुछ लोग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आने के खतरे भी गिनाने लगे हैं. लोगों का मानना है कि स्मार्ट मशीनों के आने से कई काम मशीन कर सकेंगे. इससे बेरोजगारी बढ़ेगी. इसके अलावा जैसा कि हॉलीवुड फिल्मों में दिखाया जाता है वैसा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आने से मानव जाति को भी खतरा हो सकता है. क्योंकि रोबोट्स इस तकनीक के जरिए अपने आप को विकसीत कर खुद खतरनाक हथियार बना सकते हैं. हालांकि इतने दूर के भविष्य के खतरे को लेकर अभी कोई ठोस आधार नहीं है और इसीलिए लोग अभी इसे कौतूहल भरी नजरों से देख रहे हैं.

गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

तकनीक पर इंसान की निर्भरता पर एक इंटरेस्टिंग फैक्ट...


आपको जानकर हैरानी होगी कि जहां दुनिया की आबादी 8 अरब के करीब है वहीं दुनिया में इस्तेमाल हो रहे कुल मोबाइल फोन की संख्या 15 अरब है. यानी दोगुने के करीब...पहले इंसान मशीनों से मदद लेता था लेकिन अब हर आदत मशीनों के अनुसार हो गया है. एक छोटा सा मोबाइल आज के इंसान के लिए क्या-क्या नहीं है... अलार्म, घड़ी, टीवी, रेडियो, बैंक, घर पर मौजूद बाजार, निवेश, ऑनलाइन पढ़ाई का माध्यम, गेम, मनोरंजन के लिए सिनेमा, गानों और खेल का अड्डा... लेकिन इसके खतरे भी कई हैं... आज ये जहां हर काम में मददगार है वहीं इंसान की दुनिया इसी छोटे से मोबाइल में कैद होकर भी रह गई है... दुनिया का सबसे महंगा मोबाइल फोन The Goldphone by Caviar को माना जाता है. सोने से बने इस मोबाइल की कीमत 1,26,56,000 रुपये है. 

रविवार, 28 नवंबर 2021

नीदरलैंड के बच्चे दुनिया में सबसे खुशहाल क्यों हैं? भारतीय मां-बाप से अलग वहां क्या है?


आज सुबह-सुबह अखबारों को खंगाल रहा था तभी पड़ोस के मकान से एक महिला की आवाज आई- हरामजादे स्कूल के काम कब करेगा? जाहिर है ये किसी मां की आवाज थी जो अपने बच्चे की बेहतरी को लेकर चिंतित थी लेकिन तरीका वहीं अपना ठेठ देसी भारतीय. इससे पहले कि उस महिला की आलोचना मन में आती, कल की अपनी गलती याद आ गई. ठीक ऐसे ही तो डांटा था मैंने भी अपने 9 साल के बच्चे को. जो अपनी पढ़ाई में हर समय अव्वल रहता है बस हमारी पुरानी सोच के अनुरूप किताबी कीड़ा बनने से बचता रहता है.


गूगल में सर्च करने लगा कि क्या दुनिया के बाकी देशों में भी मां-बाप बच्चों को ऐसे ही हैंडल करते हैं तो हाथ लगी  UNICEF की साल 2020 की एक रिपोर्ट. जिसके अनुसार यूरोपीय देश नीदरलैंड के बच्चों को सबसे खुशहाल के रूप में आंका गया है. मन में सवाल उठा कि आखिर वहां के मां-बाप के वे कौन से तरीके हैं या स्कूली सिस्टम में ऐसा क्या फर्क है कि हमारी मार-पिटाई, डांट-फटकार वाले सिस्टम से अलग जिंदगी वहां के बच्चे जी रहे हैं और ज्यादा खुशहाल हैं, बल्कि यूं कहें कि ज्यादा सफल भी हैं.


बच्चों की ये रैंकिंग 41 अमीर देशों की स्टडी के आधार पर तैयार की गई. इसका पैमाना एकेडमिक और सोशल स्किल थी. साथ ही मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक स्वास्थ्य समेत वे सारे पैमाने भी थे जो स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन के लिए जरूरी हैं. नीदरलैंड के बाद डेनमार्क और नॉर्वे इस लिस्ट में दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं. 41 देशों की इस लिस्ट में सबसे नीचे मिले चिली, बुल्गारिया और अमेरिका. नीदरलैंड आर्थिक रूप से मजबूत देश है, सामाजिक सुरक्षा के लिहाज से भी वहां सरकारें काफी जिम्मेदारियां उठाती हैं, लेकिन इसका  मतलब ये भी नहीं है कि सिर्फ पैसे से खुशहाली आती है. सिर्फ पैसे से बच्चों की खुशहाली तय होती तो अमेरिका इतना पीछे नहीं होता.


एक्सपर्ट इसका सीक्रेट बताते हैं... बच्चों के लिए स्पष्ट लिमिट यानी सीमाएं तय करें, प्रेम और संबंधों में वार्म्थ, कुछ अच्छा करने का मोटिवेशन, साथ ही उन्हें अपने भविष्य का रास्ता चुनने की आजादी दें. यही कुछ सीक्रेट्स हैं जो बच्चों की खुशहाली का रास्ता साफ करते हैं. बच्चों से खुलकर बात करें कि वे क्या करना चाहते हैं, क्या कमियां हैं, कैसे उन्हें दूर किया जा सकता है. डच लोग यानी नीदरलैंड के लोग अपने बच्चों से उन मुद्दों पर भी खुलकर बात करते हैं जिनपर एशियाई समाजों में बच्चों और पैरेंट्स के बीच एक दीवार जैसी खड़ी कर दी गई है.


इसके अलावा भी कई ऐसे फैक्टर हैं जो तय करते हैं कि बच्चों की जिंदगी खुशहाली भरी होगी या नहीं? जैसे- बच्चों पर कितना एकेडमिक बोझ है, कहीं सोशल मीडिया के प्रभाव में दूसरों के पोस्ट देखकर आप भ्रमित होकर बच्चों पर दबाव तो नहीं बना रहे हैं क्योंकि जरूरी नहीं कि सोशल मीडिया पोस्ट में लोग जितने चमकते दिख रहे हों वो सच ही हो. सोशल मीडिया के दौर में मां-बाप के लिए जरूरी है कि वे वास्तविकता की धरातल को पहचानें. बेवजह बच्चों पर दबाव न बनाएं. बच्चों को इस बात की आजादी मिले कि वो जो बनना चाहते हैं उन्हें उस दिशा में काम करने की आजादी मिले. वे सकारात्मक माहौल के लिए अपने सही दोस्त चुन सकें. उन्हें हर बात पर जज न किया जाए. खेल-कूद की भी उन्हें आजादी मिले.


नीदरलैंड स्कूलों में गलाकाट प्रतियोगिता के माहौल की जगह स्किल लर्निंग के माहौल पर जोर देने वाला देश है. मां-बाप के लिए एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि स्कूल के स्कोर कोई आखिरी पैमाना नहीं हो सकते हैं बच्चों को आंकने के लिए. इसकी बजाय बच्चों में लर्निंग और जिज्ञासा के माहौल को बढ़ाने पर जोर दें. इस लिस्ट में तीसरे नंबर पर नॉर्वे है. नॉर्वे अपने स्कूलों में टूगैदरनेस को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है. मतलब अपने साथ-साथ दूसरों को भी प्रगति में मदद करने की आदत. इसके लिए परिवारों का सामुदायिक बेहतरी के कामों में योगदान देने को वहां के समाज में काफी सराहा जाता है.


हमारे एशियाई समाज इसीलिए टूटते चले गए कि हमनें न तो परिवारों को संभालने पर ध्यान दिया और न ही समाज में अच्छी आदतों, अच्छे काम और अच्छी पहल को सराहने की पहल की. और जो काम हम नहीं करते वो बच्चे कैसे सीखेंगे. हम जो गलतियां खुद करते हैं उन्हें बच्चों को नहीं करने को कहते हैं... आखिर ये कैसे संभव है कि हम कर रहे हैं और बच्चों को रोक पाएं. इसलिए सबसे जरूरी है खुद में बदलाव लाएं और फिर अच्छे बदलावों को बच्चों को समझाएं.

शनिवार, 20 नवंबर 2021

प्रदूषण से निपटना इतना मुश्किल तो नहीं, अगर सरकारों की इच्छाशक्ति हो तो?

किसी शायर ने आज के हालात को देखते हुए ही शायद लिखा था-

'सांस लेता हूं तो दम घुटता है,

कैसी बे-दर्द हवा है यारो...'




कभी महान साइंटिस्ट स्टीफन हॉकिंग ने कहा था कि दुनिया के संसाधनों का इंसान इतना ज्यादा इस्तेमाल कर रहा है कि 100 साल बाद ये धरती रहने लायक नहीं रह जाएगी और इंसान को किसी और ग्रह पर जाकर रहना होगा. आज भविष्य के इस संकट की झलक दिल्ली जैसे बड़े शहरों में एयर पॉल्यूशन यानी प्रदूषण के रूप में दिखने भी लगी है.


लेकिन दूसरे देशों में उठाए जा रहे कदमों को देखकर आप भी अंदाजा लगा सकते हैं कि आपके मुल्क में समस्याओं को हल करने के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं वो क्यों सफल नहीं होते?


साल 2019 में बैंकॉक शहर में प्रदूषण के हालात एकदम गंभीर अवस्था में आ गए थे. ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों पर रोक लगाई गई, बच्चों को सेफ रखने के लिए स्कूलों को बंद किया गया, फैक्ट्रियों और अन्य उद्योग धंधों में प्रदूषण की निगरानी के लिए पुलिस और सेना को तैनात कर सख्ती की गई.


कई इनोवेटिव कदम उठाए गए. प्लेन के जरिए क्लाउस सीडिंग कर कृत्रिम बरसात कराई गई और आसमान से प्रदूषण को साफ किया गया. सड़कों पर चल रहे टू-थ्री व्हीलर्स गाड़ियों को गैसोलीन की बजाय इलेक्ट्रिक गाड़ियों में बदलने के लिए कदम उठाए गए. शहर में गाड़ियां कम करने के लिए कैनल ट्रांसपोर्ट सिस्टम शुरू किया गया ताकि नहरों में नाव और फेरी चलाकर ट्रांसपोर्ट के नए विकल्प दिए जा सकें.


आज दो साल बाद वहां PM2.5 AQI लेवल 50-82 के बीच बना हुआ है. जबकि WHO के स्टैंडर्ड के अनुसार 100 से अधिक का AQI बीमार लोगों और बुजुर्गों के लिए संकट का कारण बन सकता है. इसी तरह चीन ने कार्बन डाई-ऑक्साइड सोंखने और ऑक्सीजन जेनरेशन के लिए वर्टिकल जंगल लगाए, स्मॉग टॉवर बनाए.

सोमवार, 20 सितंबर 2021

दुनिया चली अंतरिक्ष की ओर...मिल गया सैर-सपाटे का नया अड्डा!

 ये हफ्ता धरती पर रह रहे इंसानों के लिए अद्भुत साबित हुआ. वैसे तो इसका अनुभव दुनिया के सिर्फ चार लोगों ने लिया लेकिन उम्मीदें सबकी जगा गए. पहली बार चार लोग अंतरिक्ष टूरिज्म करके आ भी गए.



धरती पर इंसान जलवायु परिवर्तन, कोरोना वायरस महामारी समेत तमाम समस्याओं से जूझ रहा है तो क्या इंसान अब नया ठिकाना ढूंढ रहा है? इस हफ्ते इस दिशा में पहली कामयाबी इंसान ने हासिल की है. अमेरिकी बिजनेसमैन एलन मस्क की कंपनी SpaceX का पहला ऑल-सिविलियन क्रू अंतरिक्ष की सैर कर धरती पर लौट आया है. इसमें चार आम लोगों को स्पेस एक्स कैप्सूल से अंतरिक्ष भेजा गया था. इन लोगों ने तीन दिन अंतरिक्ष में गुजारे और फिर सुरक्षित वापस लौट आए.


चार यात्रियों में 38 साल के जेयर्ड आईजैकमैन, 51 साल के सियान प्रॉक्टर, 29 साल की महिला हेइली एक्रेनेऑक्स और 42 साल के क्रिस सेम्ब्रोस्की शामिल थे. इस यात्रा पर 200 मिलियन डॉलर का खर्च आया. पूरा खर्च इन चारों में शामिल जेयर्ड आईजैकमैन ने उठाया. आईजैकमैन ई-कॉमर्स कंपनी शिफ्ट 4 पेमेंट्स के सीईओ हैं. इंस्पिरेशन 4 के क्रू मेंबर्स का इस अंतरिक्ष यान को उड़ाने में कोई रोल नहीं था. इसे जमीन से ही ऑपरेट किया गया था. हालांकि, आईजैकमैन और प्रॉक्टर दोनों ही पायलट हैं.


चार लोगों की इस यात्रा ने स्पेस टूरिज्म के रास्ते खोल दिए हैं. अगर आपके पास पैसे हैं और घूमने का रोमांचक शौक है तो आप कुल्लू-मनाली, स्विटजरलैंड से आगे अंतरिक्ष तक भी घूमने निकल सकते हैं.

रविवार, 20 जून 2021

लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है...

 ...सपना क्या है? नयन सेज पर,

सोया हुआ आँख का पानी,
और टूटना है उसका ज्यों,
जागे कच्ची नींद जवानी,
गीली उमर बनाने वालों! डूबे बिना नहाने वालों!
कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है।
माला बिखर गई तो क्या है,
खुद ही हल हो गई समस्या,
आँसू गर नीलाम हुए तो,
समझो पूरी हुई तपस्या,
रूठे दिवस मनाने वालों!
फटी क़मीज़ सिलाने वालों!
कुछ दीपों के बुझ जाने से आँगन नहीं मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर,
केवल जिल्द बदलती पोथी।
जैसे रात उतार चाँदनी,
पहने सुबह धूप की धोती,
वस्त्र बदलकर आने वालों!
चाल बदलकर जाने वालों!
चंद खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार कश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों!
लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
-गोपाल दास नीरज की कविता का एक हिस्सा...

रविवार, 13 जून 2021

उम्मीदों का दीया जल रहा है...


उम्मीदों का दीया जल रहा है...

आंधियों से लड़ रहा है...


ये पंक्तियां आज किसी एक इंसान के जीवन की कहानी नहीं है, बल्कि दुनिया के 8 अरब लोग कमोबेश इसी हालात से गुजर रहे हैं...पिछले 16 महीने ऐसे बीते हैं जैसे कैदखाने में बीते हों...जैसे जिंदगी में कोई उम्मीद ही न बची हो, जैसे सबकुछ ठहर सा गया हो... न इंसान अपने तरीके से जी सकता है, न अपने पसंद की जगहों पर जा सकता है, न पसंद की चीजें खा सकता है, न किसी से मिल सकता है...रिश्ते-नाते, जान-पहचान सब ठेंगे पर रखे जा चुके हैं...है न निराश होने वाली बात..लेकिन नहीं...रुकने का नाम नहीं है जिंदगी...न ठहरने का...बल्कि चलते रहने का नाम ही है जिंदगी...इन 16 महीनों ने काफी कुछ सिखाया भी हमें...जरा एक बार इन 16 महीनों की अपनी जिंदगी के पन्नों को पलटकर देखिए...


...कैसे अपनी छोटी सी दुनिया में खुश रहा जा सकता है, जीवन में किन अनावश्यक आदतों को छोड़ा जा सकता था, किन सीमित चीजों में ही बुलंदी के साथ जिया जा सकता है, शांत माहौल में अपने-आप से कैसे साक्षात्कार किया जा सकता है, सकारात्मक विचारों वाली और दुनिया को गढ़ने का इतिहास समेटें किताबें कैसे आपकी दोस्त हो सकती हैं, कैसे अपने आपको समाज-देश-दुनिया और इंसानी जीवन की वास्तविकताओं को समझने में खुद को बिजी किया जा सकता है..इन सब के कई पन्ने समेटे हैं ये 16 महीने...


एक बार इन पन्नों को पलटकर देखिए... आपके जीने के तरीकों में क्या बदलाव आए इन 16 महीनों में, कैसे हम एक मैनुअल इंसान से डिजिटल होते चले गए, कैसे हमने अपने जीवन के अधिकांश काम घर बैठे डिजिटली करने के उपाय खोज निकाले... साग-सब्जी की खरीद हो, बैंक के काम हों, दवाइयों से लेकर डॉक्टरों की सेवा लेने तक कैसे घर बैठे एक्सेस मिलने लगे... ये सब हमारी प्रगति भी तो हैं...


इतना आसान भी नहीं रहे ये संकट के महीने लेकिन मुश्किलों में ही नए रास्ते निकलते हैं..यही मानव इतिहास कहता है. तो रुकना नहीं है, थमना नहीं है...नए रास्तों को खोजना है, उनसे अपने आसपास सकारात्मक माहौल बनाना है. ये मुश्किल कब खत्म होंगी...पता नहीं लेकिन इनसे लड़ना तो हमें आ ही गया है.

सोमवार, 4 जनवरी 2021

...वो ऐप जिसपर भारत में कोरोना वैक्सीन के लिए आपको रजिस्ट्रेशन कराना होगा


Co-WIN App... भारत सरकार का आधिकारिक ऐप. देश के वे नागरिक जो हेल्थ वर्कर्स नहीं हैं वह वैक्सीन के लिए CoWIN ऐप पर सेल्फ-रजिस्टर कर सकते हैं, जिसके लिए उन्हें ये ऐप गूगल प्ले स्टोर या ऐपल ऐप स्टोर से डाउनलोड करना होगा. टीकाकरण को उपयोग के लिए लॉन्च किए जाने के बाद जो लोग ऐप पर पहले से पंजीकृत होंगे उन्हें जल्द से जल्द वैक्सीन मिल सकती है.


भारत में सरकार तीन चरणों में टीका लगवाएगी. पहले चरण में सभी फ्रंटलाइन हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स और दूसरे चरण में आपातकालीन सेवाओं से जुड़े लोगों को कोरोना का टीका लगेगा. राज्य सरकारें इन लोगों का डेटा इकट्ठा करने में लगी हैं. तीसरे चरण में उन लोगों को वैक्सीन लगाई जाएगी, जो गंभीर बीमारियों के शिकार हैं. इसके लिए, Co-Win ऐप के जरिए सेल्फ रजिस्ट्रेशन प्रोसेस की जरूरत होगी.


कोरोना वैक्सीन की ट्रैकिंग और रजिस्ट्रेशन सुनिश्चित करने के लिए, Co-Win ऐप को 5 मॉड्यूल में बांटा गया है, जिसमें पहला प्रशासनिक मॉड्यूल, दूसरा रजिस्ट्रेशन मॉड्यूल, तीसरा वैक्सीनेशन मॉड्यूल, चौथा लाभान्वित स्वीकृति मॉड्यूल और पांचवां रिपोर्ट मॉड्यूल है. जो लोग टीकाकरण करवाना चाहते हैं, उन्हें पंजीकरण मॉड्यूल के तहत विवरण देना होगा. वैक्सीनेशन मॉड्यूल में, उनके विवरणों को सत्यापित किया जाएगा और लाभान्वित स्वीकृति मॉड्यूल उनके टीकाकरण के बारे में उन्हें एक सर्टिफिकेट भेजेगा.


CoWIN ऐप: Vaccine के लिए कैसे करें रजिस्टर?

1. देश के नागरिक जो स्वास्थ्य वर्कर नहीं हैं, वे CoWin ऐप पर रजिस्ट्रेशन मॉड्यूल के माध्यम से वैक्सीन के लिए रजिस्टर कर सकेंगे. CoWin ऐप को गूगल प्ले स्टोर या ऐप स्टोर के जरिए डाउनलोड किया जा सकता है.


2. Co-WIN वेबसाइट पर सेल्फ रजिस्ट्रेशन के लिए 12 फोटो आइडेंटिटी डॉक्यूमेंट्स- Voter ID, Aadhar card, driving license, passport और Pension document में से किसी एक की जरूरत होगी.


3. ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के बाद रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर एक SMS आएगा. जिसमें अलॉटेड तारीख और वैक्सीनेशन का टाइम और जगह दी जाएगी.


रविवार, 3 जनवरी 2021

दो डोज जिंदगी की

नए साल के साथ ही भारत में कोरोना से उबरने की नई उम्मीदोंं ने भी जगह बना ली है. भारत दुनिया का अकेला देश बन गया है जिसने कोरोना की दो वैक्सीन्स को एक साथ मंजूरी दी है. ऑक्सफोर्ड-सीरम इंस्टीयूट की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को मंजूरी मिल चुकी है. लेकिन इसका टीकाकरण अभी सिर्फ सरकार ही करेगी. इसलिए किसी साइबर ठग गिरोह के भ्रमजाल में न फंसें. ये टीके अभी मेडिकल फील्ड से जुड़े लोगों और सुरक्षाबलों को ही दिया जाएगा.

जंग कहां-कहां और कैसे कैसे असर डाल सकती है?

 समयकाल... साल 1941-1942 यूरोप में दूसरे महायुद्ध के छिड़े करीब दो साल हो गए थे. ब्रिटिश शासन में होने के बावजूद शुरू के दो साल भारत या दिल्...