शनिवार, 20 नवंबर 2021

प्रदूषण से निपटना इतना मुश्किल तो नहीं, अगर सरकारों की इच्छाशक्ति हो तो?

किसी शायर ने आज के हालात को देखते हुए ही शायद लिखा था-

'सांस लेता हूं तो दम घुटता है,

कैसी बे-दर्द हवा है यारो...'




कभी महान साइंटिस्ट स्टीफन हॉकिंग ने कहा था कि दुनिया के संसाधनों का इंसान इतना ज्यादा इस्तेमाल कर रहा है कि 100 साल बाद ये धरती रहने लायक नहीं रह जाएगी और इंसान को किसी और ग्रह पर जाकर रहना होगा. आज भविष्य के इस संकट की झलक दिल्ली जैसे बड़े शहरों में एयर पॉल्यूशन यानी प्रदूषण के रूप में दिखने भी लगी है.


लेकिन दूसरे देशों में उठाए जा रहे कदमों को देखकर आप भी अंदाजा लगा सकते हैं कि आपके मुल्क में समस्याओं को हल करने के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं वो क्यों सफल नहीं होते?


साल 2019 में बैंकॉक शहर में प्रदूषण के हालात एकदम गंभीर अवस्था में आ गए थे. ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों पर रोक लगाई गई, बच्चों को सेफ रखने के लिए स्कूलों को बंद किया गया, फैक्ट्रियों और अन्य उद्योग धंधों में प्रदूषण की निगरानी के लिए पुलिस और सेना को तैनात कर सख्ती की गई.


कई इनोवेटिव कदम उठाए गए. प्लेन के जरिए क्लाउस सीडिंग कर कृत्रिम बरसात कराई गई और आसमान से प्रदूषण को साफ किया गया. सड़कों पर चल रहे टू-थ्री व्हीलर्स गाड़ियों को गैसोलीन की बजाय इलेक्ट्रिक गाड़ियों में बदलने के लिए कदम उठाए गए. शहर में गाड़ियां कम करने के लिए कैनल ट्रांसपोर्ट सिस्टम शुरू किया गया ताकि नहरों में नाव और फेरी चलाकर ट्रांसपोर्ट के नए विकल्प दिए जा सकें.


आज दो साल बाद वहां PM2.5 AQI लेवल 50-82 के बीच बना हुआ है. जबकि WHO के स्टैंडर्ड के अनुसार 100 से अधिक का AQI बीमार लोगों और बुजुर्गों के लिए संकट का कारण बन सकता है. इसी तरह चीन ने कार्बन डाई-ऑक्साइड सोंखने और ऑक्सीजन जेनरेशन के लिए वर्टिकल जंगल लगाए, स्मॉग टॉवर बनाए.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

जंग कहां-कहां और कैसे कैसे असर डाल सकती है?

 समयकाल... साल 1941-1942 यूरोप में दूसरे महायुद्ध के छिड़े करीब दो साल हो गए थे. ब्रिटिश शासन में होने के बावजूद शुरू के दो साल भारत या दिल्...