उम्मीदों का दीया जल रहा है...
आंधियों से लड़ रहा है...
ये पंक्तियां आज किसी एक इंसान के जीवन की कहानी नहीं है, बल्कि दुनिया के 8 अरब लोग कमोबेश इसी हालात से गुजर रहे हैं...पिछले 16 महीने ऐसे बीते हैं जैसे कैदखाने में बीते हों...जैसे जिंदगी में कोई उम्मीद ही न बची हो, जैसे सबकुछ ठहर सा गया हो... न इंसान अपने तरीके से जी सकता है, न अपने पसंद की जगहों पर जा सकता है, न पसंद की चीजें खा सकता है, न किसी से मिल सकता है...रिश्ते-नाते, जान-पहचान सब ठेंगे पर रखे जा चुके हैं...है न निराश होने वाली बात..लेकिन नहीं...रुकने का नाम नहीं है जिंदगी...न ठहरने का...बल्कि चलते रहने का नाम ही है जिंदगी...इन 16 महीनों ने काफी कुछ सिखाया भी हमें...जरा एक बार इन 16 महीनों की अपनी जिंदगी के पन्नों को पलटकर देखिए...
...कैसे अपनी छोटी सी दुनिया में खुश रहा जा सकता है, जीवन में किन अनावश्यक आदतों को छोड़ा जा सकता था, किन सीमित चीजों में ही बुलंदी के साथ जिया जा सकता है, शांत माहौल में अपने-आप से कैसे साक्षात्कार किया जा सकता है, सकारात्मक विचारों वाली और दुनिया को गढ़ने का इतिहास समेटें किताबें कैसे आपकी दोस्त हो सकती हैं, कैसे अपने आपको समाज-देश-दुनिया और इंसानी जीवन की वास्तविकताओं को समझने में खुद को बिजी किया जा सकता है..इन सब के कई पन्ने समेटे हैं ये 16 महीने...
एक बार इन पन्नों को पलटकर देखिए... आपके जीने के तरीकों में क्या बदलाव आए इन 16 महीनों में, कैसे हम एक मैनुअल इंसान से डिजिटल होते चले गए, कैसे हमने अपने जीवन के अधिकांश काम घर बैठे डिजिटली करने के उपाय खोज निकाले... साग-सब्जी की खरीद हो, बैंक के काम हों, दवाइयों से लेकर डॉक्टरों की सेवा लेने तक कैसे घर बैठे एक्सेस मिलने लगे... ये सब हमारी प्रगति भी तो हैं...
इतना आसान भी नहीं रहे ये संकट के महीने लेकिन मुश्किलों में ही नए रास्ते निकलते हैं..यही मानव इतिहास कहता है. तो रुकना नहीं है, थमना नहीं है...नए रास्तों को खोजना है, उनसे अपने आसपास सकारात्मक माहौल बनाना है. ये मुश्किल कब खत्म होंगी...पता नहीं लेकिन इनसे लड़ना तो हमें आ ही गया है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें