...सपना क्या है? नयन सेज पर,
अपना देश भारत बदल रहा है, समाज बदल रहा है, बहुत कुछ अच्छा भी हो रहा है. तो रुकिए मत, चलते रहिए, बदलते रहिए खुद को आने वाले कल के अनुसार, बदलते हुए तकनीक के अनुसार, बदलते हुए पर्यावरण के अनुसार...क्योंकि चलते रहने का नाम ही है जिंदगी...
रविवार, 20 जून 2021
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है...
रविवार, 13 जून 2021
उम्मीदों का दीया जल रहा है...
उम्मीदों का दीया जल रहा है...
आंधियों से लड़ रहा है...
ये पंक्तियां आज किसी एक इंसान के जीवन की कहानी नहीं है, बल्कि दुनिया के 8 अरब लोग कमोबेश इसी हालात से गुजर रहे हैं...पिछले 16 महीने ऐसे बीते हैं जैसे कैदखाने में बीते हों...जैसे जिंदगी में कोई उम्मीद ही न बची हो, जैसे सबकुछ ठहर सा गया हो... न इंसान अपने तरीके से जी सकता है, न अपने पसंद की जगहों पर जा सकता है, न पसंद की चीजें खा सकता है, न किसी से मिल सकता है...रिश्ते-नाते, जान-पहचान सब ठेंगे पर रखे जा चुके हैं...है न निराश होने वाली बात..लेकिन नहीं...रुकने का नाम नहीं है जिंदगी...न ठहरने का...बल्कि चलते रहने का नाम ही है जिंदगी...इन 16 महीनों ने काफी कुछ सिखाया भी हमें...जरा एक बार इन 16 महीनों की अपनी जिंदगी के पन्नों को पलटकर देखिए...
...कैसे अपनी छोटी सी दुनिया में खुश रहा जा सकता है, जीवन में किन अनावश्यक आदतों को छोड़ा जा सकता था, किन सीमित चीजों में ही बुलंदी के साथ जिया जा सकता है, शांत माहौल में अपने-आप से कैसे साक्षात्कार किया जा सकता है, सकारात्मक विचारों वाली और दुनिया को गढ़ने का इतिहास समेटें किताबें कैसे आपकी दोस्त हो सकती हैं, कैसे अपने आपको समाज-देश-दुनिया और इंसानी जीवन की वास्तविकताओं को समझने में खुद को बिजी किया जा सकता है..इन सब के कई पन्ने समेटे हैं ये 16 महीने...
एक बार इन पन्नों को पलटकर देखिए... आपके जीने के तरीकों में क्या बदलाव आए इन 16 महीनों में, कैसे हम एक मैनुअल इंसान से डिजिटल होते चले गए, कैसे हमने अपने जीवन के अधिकांश काम घर बैठे डिजिटली करने के उपाय खोज निकाले... साग-सब्जी की खरीद हो, बैंक के काम हों, दवाइयों से लेकर डॉक्टरों की सेवा लेने तक कैसे घर बैठे एक्सेस मिलने लगे... ये सब हमारी प्रगति भी तो हैं...
इतना आसान भी नहीं रहे ये संकट के महीने लेकिन मुश्किलों में ही नए रास्ते निकलते हैं..यही मानव इतिहास कहता है. तो रुकना नहीं है, थमना नहीं है...नए रास्तों को खोजना है, उनसे अपने आसपास सकारात्मक माहौल बनाना है. ये मुश्किल कब खत्म होंगी...पता नहीं लेकिन इनसे लड़ना तो हमें आ ही गया है.
जंग कहां-कहां और कैसे कैसे असर डाल सकती है?
समयकाल... साल 1941-1942 यूरोप में दूसरे महायुद्ध के छिड़े करीब दो साल हो गए थे. ब्रिटिश शासन में होने के बावजूद शुरू के दो साल भारत या दिल्...